जिलाधिकारी ने फसल अवशेष प्रबंधन जागरूकता वाहन को हरी झंडी दिखाकर किया रवाना

MAHARSHI TIMES
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16 से 20 नवंबर तक जनपद के सभी विकास खंडों में चलाया जाएगा अभियान।

महर्षि टाइम्स 

बलिया। जिले में फसल अवशेष प्रबंधन को बढ़ावा देने और पराली जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति किसानों को जागरूक करने के उद्देश्य से जिलाधिकारी मंगला प्रसाद सिंह ने शनिवार को कलेक्ट्रेट सभागार से प्रचार-प्रसार वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। ये वाहन 16 नवंबर 2025 से 20 नवंबर 2025 के बीच जनपद के सभी विकास खंडों एवं तहसीलों में निर्धारित तिथियों पर भ्रमण करेंगे। अभियान के दौरान कृषकों व आमजन को बताया जाएगा कि पराली जलाने से न केवल मृदा स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि उसमें मौजूद लाभदायक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है, जिससे उसकी भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जिलाधिकारी ने किसानों से अपील किया कि वे खेतों में फसल अवशेष कतई न जलाएं, बल्कि फसल अवशेष प्रबंधन यंत्रों या बायो-डिकम्पोजर का उपयोग कर अवशेषों को सड़ाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं। कम्बाइन हार्वेस्टर से कटाई के बाद किसान सुपर सीडर, हैप्पी सीडर, स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, जीरो टिल सीड कम फर्टीलाइजर ड्रिल, श्रेडर, मल्चर, रोटरी स्लेशर, रीपर, बेलिंग मशीन आदि यंत्रों का उपयोग कर प्रभावी तरीके से अवशेष प्रबंधन कर सकते हैं। इसके लिए सरकार द्वारा इन-सीटू योजना के अंतर्गत कस्टम हायरिंग सेंटर एवं फार्म मशीनरी बैंक स्थापित किए गए हैं, जहाँ से किसान आसानी से किराए पर यंत्र प्राप्त कर सकते हैं।

जिलाधिकारी ने बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय एवं राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के कड़े निर्देशों के तहत पराली जलाने की घटनाओं की सैटेलाइट से निगरानी की जा रही है। पराली जलाने की स्थिति में संबंधित खेत का विवरण स्वतः रिकॉर्ड हो जाएगा और किसानों को कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

*पराली जलाने पर जुर्माने का प्रावधान*

2 एकड़ से कम भूमि वाले किसानों पर ₹5,000 प्रति घटना, 2 से 5 एकड़ के बीच भूमि वाले किसानों पर ₹10,000 प्रति घटना 5 एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों पर ₹30,000 प्रति घटना, जिलाधिकारी ने सभी किसानों से अपील किया कि वे पराली जलाकर दंडात्मक कार्रवाई से बचें और इसे मिट्टी में मिलाकर खाद के रूप में उपयोग करें, ताकि पर्यावरण संरक्षण और मृदा स्वास्थ्य दोनों को सुरक्षित रखा जा सके।

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